यौन और लिंग आधारित हिंसा – बढ़ रही है

मैं यौन और लिंग आधारित हिंसा से बची पीड़िता हूं, और नई दिल्ली के जहांगीरपुरी में रहने वाली एक महिला हूं। खैर, बचपन से ही मैंने जीवन मे सफल होने और सुखी जीवन जीने का सपना देखा था। मैंने सोचा था कि मैं पढूंगी, शादी करुँगी और अपना जीवन पूरी तरह से जीऊंगा और मैंने सोचा था कि मेरे पास अपनी पहली शादी में एक खुशहाल तथा स्थिर जीवन और रिश्ते की उम्मीद करने के सब काऱण थे।

खैर, मैंने आखिरकार शादी कर ली और शादी के 10 दिन बाद ही, मेरे पति ने मुझे हर बात पर पीटना और गाली देना शुरू कर दिया। इससे मुझे बहुत दर्द होता लेकिन मैं सोचती थी, कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हिंसा मेरे जीवन का एक सामान्य हिस्सा था। मेरे पति द्वारा हर दिन मेरा बलात्कार किया जाता था जिसके कारण मैं भावनात्मक रूप से टूट गई थी और मैं हर दिन मरना चाहती थी। अगर मैं शारीरिक रूप से शामिल होने से इनकार करती, तो वह मुझे पीटता और अपशब्द कहता, जिसे सुनकर मुझे एक औरत होने पर घृणा महसूस होती थी। जब मैं गर्भवती थी तब भी मेरे साथ बलात्कार किया गया और मुझे खाना नहीं दिया जाता था। जिस वक्त मुझे प्यार और देखभाल की सबसे ज्यादा जरूरत थी, उस वक्त मुझे छोटी-छोटी बातों पर पीटा जाता था। कभी-कभी मैं सोचती थी कि मेरे मरने के बाद तो सब ठीक हो जाएगा या नहीं। मैं अपने पति की आवाज से भी डरती थी। मैंने ये स्वीकार कर लिया था कि मैं एक हारे हुए इंसान के अलावा कुछ नहीं हूं और यहीं मेरी किस्मत है। मेरा दूसरों पर से भरोसा उठ गया था क्योंकि मेरी स्थिति जानने के बाद बस सभी ने मेरा मजाक उड़ाया। मुझे उम्मीद थी कि मेरे माता-पिता तो मेरी मदद करेंगे, लेकिन उन्होंने भी अपना साथ वापस ले लिया।

यह स्थिति लगभग एक वर्ष तक और मेरी गर्भावस्था की पूरी अवधि तक रही। मेरी बहन पूरे समय मेरे साथ थी और उसने भावनात्मक रूप से मेरा साथ दिया। लेकिन जब उसने देखा कि मेरी हालत काफी बिगड़ती जा रही है, तो उसने अनुभवी व्यक्ति से मदद लेने का सुझाव दिया। जिस पर वह भी विश्वास करती थी। उसने मुझे उम्मीद की किरण क्लिनिक में पहुंचने के लिए कहा और मुझे इसके बारे सब कुछ बताया। मुझे पहले तो संदेह हुआ कि मेरे पति को सब बता देंगे या पुलिस इसमें शामिल हो जाएगी, लेकिन अंत मे मुझे अपनी बहन पर विश्वास हो गया क्योंकि उसने खुद क्लिनिक की सेवाओं का लाभ उठाया था। लेकिन फिर भी मुझे यकीन नहीं था कि मैं वहां जाऊं या नहीं क्योंकि मेरी जैसी कहानी को अन्य लोगों के साथ बांटना आसान नहीं है। लड़की को जन्म देने और मेरे बेकार होने के ताने से मेरे स्वाभिमान को हर तरह से ठेस पहुंची थी।

मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि जब मैं दूसरी बार गर्भवती हुई थी, तब एक बार अच्छा खाना ना बनाने के कारण मुझे पेट में लात मारी गई थी, जिसके कारण बच्चे की मृत्यु हो गई थी। मुझे पता था कि कुछ ठीक नहीं है और मैं अस्पताल जाना चाहती थी और अपने पति से विनती की लेकिन फिर भी वह मुझे अस्पताल नहीं ले गया। उस समय मैंने अपने अंदर एक ताकत महसूस की, खुद अस्पताल गई और अपना इलाज कराया। उस दिन मैं चुप थी, लेकिन मेरी आत्मा रो रही थी, इसलिए आखिरकार मैंने हिम्मत जुटाई और उम्मीद की किरण क्लिनिक जाने का फैसला किया। लेकिन मेरे पति के घर से क्लिनिक जाना मेरे लिए सुरक्षित नहीं था, पर अपने माता-पिता के घर से वहाँ जाना सुरक्षित था, क्योंकि मुझे अपने पति के सवालों का जवाब नहीं देना था कि मैं कहाँ थी।

पहले तो मैं इमारत की साफ-सफाई से थोड़ा डरी हुई थी,  लेकिन पहली मुलाकात के बारे में मुझे जो सबसे अच्छे से याद है, वह यह था कि मैं अपनी स्थिति को व्यक्त करने में असमर्थ थी और मेरी हिंसा से जुडी बातें धुंधली थी। उस समय मुझे फिर से वापस आना पड़ा और  तब मै अपनी कहानी बता पाई। मैं अपने चेकअप के लिए ट्राइएज रूम (triage room) में थी, जिसके बाद मुझे काउंसलर से मिलना था। वेटिंग रूम में बैठकर मै सोच थी, कि क्या काउंसलर वास्तव में मेरी भावनाओं को समझेंगे और उसका मजाक तो नहीं उड़ाएंगे उड़ायेंगे। लेकिन काउंसलर ने मुझे बहुत ही सहज महसूस कराया और मुझे बताया कि मेरी जानकारी को गोपनीय रखा जाएगा। काउंसलर ने मेरे साथ इतने अच्छे तरीके से बात की कि मेरे अंदर जो कुछ भी था, मैंने उनसे सब कुछ साझा करा दिया। काउंसलिंग सेशन लेने के बाद मुझे राहत महसूस हुई। काउंसलिंग के दौरान, काउंसलर ने मुझे बताया कि वे एक व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में भी मदद करते हैं। मुझे सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा एक ब्यूटीशियन पाठ्यक्रम में नामांकित किया गया था। मैंने अपना काउंसलिंग सत्र जारी रखा। इसने मेरी समस्याओं का तुरंत समाधान नहीं किया, इसने हिंसा को तुरंत नहीं रोका, लेकिन इसने मुझे उन समस्याओं को स्वयं हल करने में बहुत मदद की, एक समय में एक कदम

मैं केवल यह बताना चाहती हूं कि बदलाव रातोंरात नहीं हुआ, मुझे इससे बाहर आने में दो साल लग गए। जब मैं ब्यूटीशियन कोर्स सीख रही थी, जहां यूकेके सोशल वर्कर ने मुझे भर्ती किया था, मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। मैंने शादियों और छोटे-छोटे फंक्शन्स में मेकअप और मेहंदी लगाकर पैसे कमाए, लेकिन मैं खुश थी क्योंकि वहां मैं पूरे दिल से हंस सकती थी। कभी-कभी मैं अपनी बेटी को भी साथ ले जाती थीं। धीरे-धीरे मेरा आत्मविश्वास बढ़ता गया और मैं और अधिक स्वतंत्र होती गई। अब मेरा अपना घर है, एक स्थिर नौकरी है और मेरे माता-पिता और परिवार के साथ मेरे संबंधों में बहुत सुधार हुआ है। कोई भी बहन उसे गुजर रही है जिसे मैं गुजरी हूं, और जो अपनी कहानी बताने और मदद मांगने से हिचकिचाती हैं, तो मैं कहूँगी, यह लड़ाई घर या पति के बारे में नहीं है, बल्कि यह आपके स्वाभिमान और सम्मान की लड़ाई है जिसे आपने खो दिया है, लेकिन आप उसे वापस प्राप्त कर सकते हैं। कौन कहता है कि आदमी के बिना जीवन असंभव है, पर मैं कहती हूं कि एक ऐसे आदमी के साथ रहना जो आपको सम्मान नहीं देता, हर दिन मौखिक और शारीरिक शोषण से आपके आत्म-सम्मान को अपने पैरों के नीचे कुचल देता है, इस तरह के आदमी के साथ रहना असंभव है। उम्मीद की किरण क्लिनिक आपके लिए इस स्थिति को हल नहीं करेगा, आप इसे अपने लिए हल करेंगे, यही कॉउंसलिंग सत्र का अंतिम लक्ष्य है। लेकिन उम्मीद की किरण क्लिनिक एक हजार कदमों की इस यात्रा में आपके साथ रहेगा, खासकर पहले कदम के लिए, जो उठाना अक्सर सबसे कठिन होता है।