MSF ने कोरोनवायरस लॉकडाउन के बावजूद भी यौन हिंसा से बचे लोगों को सहारा दिया।
कोविड-19 के कारण दुर्व्यवहारियों के साथ रहने वाले लोगों के लिए हिंसा मे बढ़ोतरी हुई।
मार्च 2020 में, कोविड-19 के प्रसार पर रोक लगाने के लिए, भारत भी दुनिया भर के अन्य कई देशों की तरह सख्त लॉकडाउन को लागू करने और महामारी से उत्पन्न होने वाली जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वास्थ्य संसाधनों की व्यवस्था करने में शामिल हो गया। विश्व स्तर पर, इस तरह के उपायों के परिणामस्वरूप यौन और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल (जिसमे सुरक्षित गर्भपात, गर्भनिरोधक सहित यौन हिंसा के उपचार) तक पहुंच बहुत ही सीमित हो गई। इन प्रतिबंधों का एक दुखद परिणाम यह है कि अज्ञात संख्या में लोग, जो दुर्व्यवहार करने वालों के साथ रह रहे थे, वे अचानक फंस गए थे, उनके पास इलाज की कोई सुविधा नहीं थी और न ही बचने का कोई रास्ता था।
महामारी की पहली लहर के चरम सीमा पर, भारत की राजधानी नई दिल्ली में डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स / मेडिसिन सैंस फ्रंटियर (MSF) द्वारा संचालित क्लिनिक, लगभग दस लाख लोगों की आबादी के लिए यौन और लिंग आधारित हिंसा (एसजीबीवी) के उपचार के लिए केवल एकमात्र स्थान था। हालांकि, पीड़ितों के साथ काम करने वालों के अनुसार, लोगों को सवास्थ्य सेवा से जोड़ने में सबसे बड़ी बाधा सामुदायिक पहुंच में कमी थी। इस विश्व संकट ने इस तथ्य को स्पष्ट रूप उभरने में मदद करी, की यौन और लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ, जुड़ाव और निरंतर सामुदायिक संपर्क के बिना कोई प्रगति नहीं की जा सकती है। एक बार सामुदायिक पहुंच को फिर से शुरू करने की अनुमति मिलने के बाद, MSF के क्लिनिक में रोगियों की संख्या में आश्चर्यजनक रूप से तीन गुना वृद्धि देखी गई।

महत्वपूर्ण सामुदायिक संपर्क
MSF का यौन और लिंग आधारित हिंसा क्लिनिक दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में अत्यधिक आवाजाही वाली मुख्य सड़क पर स्थित है, जिसके पड़ोस में एक घनी आबादी वाला तथा कम आय वाला क्षेत्र है। यहाँ करीबी साथी द्वारा हिंसा (शारीरिक, यौन, या मनोवैज्ञानिक नुकसान जो पति या पत्नी या किसी अन्य करीबी साथी द्वारा किया जाता है) सबसे सामान्य दुर्व्यवहार है, जो क्लिनिक स्टाफ के सामने आता है।
पूनम देवी और पूजा उम्मीद की किरण क्लिनिक की सक्रिय सामुदायिक पहुंच टीम का हिस्सा हैं जो यौन हिंसा के बारे में जागरूकता बढ़ाने और देखभाल की आवश्यकता वाले लोगों को क्लिनिक में लाने के लिए समाज में जाती है। क्लिनिक में आने वाला लगभग हर पीड़ित वहाँ इसलिए आता है क्योंकि उन्हें पूनम और पूजा जैसे निष्ठावान कार्यकर्ताओं द्वारा वहाँ आने के लिए समझाया और राजी किया जाता है। लेकिन इन लोगों की पहचान करना और उनके साथ विश्वास बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण है, और जहांगीरपुरी जैसी जगह में इसके लिए कनेक्शन और नेटवर्क की आवश्यकता होती है। हमारी टीम की अधिकांश प्रभावशीलता जमीनी स्तर के गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) और स्वयंसेवी मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) Accredited Social Health Activists (ASHAs) के साथ संबंध बनाने और बनाए रखने पर निर्भर करती है।
सीमा रानी (जो भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और एमएसएफ के साथ एक स्वयंसेवक हैं) कहती हैं- आशा के रूप में, हमारा केंद्र बिंदु स्वास्थ्य है, लेकिन इसके साथ बहुत से ऐसे मुद्दे (जैसे घरेलू हिंसा) हैं जो हमारे बेहतर स्वास्थ्य को प्राप्त करने के प्रयास को विफल कर देते है, हमे उन पर ध्यान देना होगा।
आशा ASHA सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता होते हैं जिनके पास जिम्मेदारियों की एक लंबी सूची है जिसमें यौन और प्रजनन स्वास्थ्य, नवजात और बाल स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना शामिल है। वे उन क्षेत्रों से जमीनी स्तर से जुड़े हैं जो उन्हें सौंपा गया है, इसलिए वे समुदाय को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं और समुदाय उन्हें जानता है। सामुदायिक फील्ड टीम के सदस्य नियमित रूप से अपने कार्य के दौरान आशा से जुड़े रहते हैं। आशा, फील्ड टीम के सदस्यों को समुदाय के उन लोगों से जोड़ती हैं जिन्हें उम्मीद की किरण क्लिनिक द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं की आवश्यकता होती है जैसे – एचआईवी से बचे लोगों की रक्षा के लिए पोस्ट-एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (पीईपी) post-exposure prophylaxis (PEP), एचआईवी और अन्य यौन संबंध संचरित रोगों के लिए जाँच, गर्भनिरोधक, पहले 12 हफ्तों में सुरक्षित गर्भपात देखभाल, घाव की देखभाल, मानसिक स्वास्थ्य के लिए सलाह और बहुत कुछ।
लॉक डाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामले बढ़े और देखभाल के साधन सीमित हुए।
जब कोरोनो वायरस महामारी ने दिल्ली को घेरा, तो सीमा और एमएसएफ के साथ स्वयंसेवा करने वाली सात अन्य आशाओं को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा निर्देश दिया गया था कि वे अपना ध्यान कोविड-19 गतिविधियों पर केंद्रित करें जैसे – स्क्रीनिंग आयोजित करना और संपर्क ट्रेसिंग शुरू करने में मदद करना। वह कहती हैं, जब ऐसा हुआ, तब “समुदाय में अवयवस्था थी”।
सीमा कहती हैं, “आशा कार्यकर्ताओं तक महिलाओं की उतनी पहुंच नहीं थी और न जानकारी थी, जो हम आम तौर पर उन्हें परिवार नियोजन से संबंधित देते थे, क्योंकि हम कोविड के साथ इतने व्यस्त थे। इसलिए लॉकडाउन के दौरान, समुदाय में अवांछित गर्भधारण की संख्या में काफी वृद्धि हुई।”
यौन और लिंग आधारित हिंसा क्लिनिक के स्टाफ सदस्य भी सीमित थे वो भी क्या कर सकते थे। उन्होंने फोन के जरिए मौजूदा मरीजों तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन इसमें बहुत दिक्कतें थीं। पीड़ितों के पास अक्सर अपने स्वयं के फोन नहीं होते हैं – वे एक ही फोन को परिवार के बाकी लोगों के साथ साझा करते हैं – इसलिए वे अक्सर क्लिनिक की कॉल से चूक जाते हैं। परिवार के सदस्यों के साथ घर में बंद रहते हुए अपनी स्थिति के बारे में बात करने में सहज महसूस करना भी उनके लिए मुश्किल था।
जबकि मौजूदा रोगियों से जुड़ना चुनौतीपूर्ण था और नए रोगियों तक पहुंचना असंभव था। पूनम कहती हैं, “हम वहां नहीं जा सकते थे, और हम नए लोगों से फोन पर बात नहीं कर सकते थे।” इसलिए जहां हम समुदाय को क्लिनिक की सेवाओं से जोड़ने की कोशिश कर रहे थे वहां इसने एक बड़ी दीवार खड़ी कर दी।
पूजा कहती हैं, ”जिन एनजीओ के साथ हम काम करते हैं, उन्हें काम करने में दिक्कत हो रही थी।” इस अवधि के दौरान, हमने अपने कुछ कनेक्शन खो दिए क्योंकि लोग चले गए और नए लोग जहांगीरपुरी आए, जिन्हें हम नहीं जानते थे, और इससे रिश्तों को जारी रखना मुश्किल हो गया।” यह क्षेत्र पूरे भारत के कई प्रवासी श्रमिकों का घर है।
इस बीच, यह लॉकडाउन घरेलू हिंसा को बढ़ा रहा था। अपराधी घर पर अधिक समय बिता रहे थे और कई लोगों ने अपनी नौकरी खो दी थी, जिससे सामाजिक अलगाव और आर्थिक तनाव दोनों पैदा हो गए थे, ये ऐसे कारक हैं, जो घरेलू शोषण को भड़काने के लिए जाने जाते हैं। यौन और लिंग आधारित हिंसा (एसजीबीवी) क्लिनिक की एक चिकित्सक डॉ. गीतिका सिंघल कहती हैं,” निश्चित रूप से, हिंसा में वृद्धि हुई थी” लेकिन शिकार हुए लोग बाहर आकर इसके लिए मदद लेने में सक्षम नहीं थे।
यह स्थिति भारत के लिए अलग नहीं है। संयुक्त राष्ट्र महिला के अनुसार, लॉकडाउन की अवधि के दौरान, इटली, सिंगापुर और पेरू सहित देशों में घरेलू हिंसा के लिए हेल्पलाइन पर रिपोर्ट और कॉल दोनों बढ़ गई हैं। दुनिया भर में कई नीतिगत फैसलों ने यौन और लिंग-आधारित हिंसा के शिकार लोगों की देखभाल तक पहुंच को प्राथमिकता दी, इस तथ्य के बावजूद कि संकट अक्सर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा में वृद्धि का कारण बनते हैं।
यौन और लिंग आधारित हिंसा क्लिनिक के अलावा, जहांगीरपुरी क्षेत्र के अन्य सभी अस्पतालों और क्लीनिकों जिन्होंने यौन हिंसा के लिए उपचार की पेशकश की थी, उन्होंने अपने संसाधनों को कोविड-19 रोगियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन सेवाओं को बंद कर दिया। प्रभावित लोगों के लिए आश्रय (जिन्हें सुरक्षित स्थान की आवश्यकता थी) काम नहीं कर रहे थे, न ही अदालतें सुरक्षा के कानूनी साधन उपलब्ध करा रही थीं।
एक पीड़ित जिसने तलाक के लिए फाइल करने के लिए यौन और लिंग आधारित हिंसा क्लिनिक से मदद मांगी थी, वह ऐसा करने में सक्षम नहीं था क्योंकि अदालतें खुली नहीं थीं, और कानूनी सेवाएं जो आमतौर पर महिलाओं को सिस्टम समझने में मदद करती थीं, उपलब्ध नहीं थीं। मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार और शिक्षिका दिव्या बत्रा का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान उस महिला ने जो अनुभव किया वह अन्य पीड़ित लोगों के समान था। “उसका पति बहुत ही निराश और परेशान था, वह नशे में भी रहता था, और वह सारा गुस्सा और सारी परेशानी इस महिला और उसके बच्चे पर निकाल रहा था। इसलिए लॉक डाउन के उन ढाई महीनों के दौरान उसके लिए स्थिति वास्तव में बहुत ही कठिन थी। ” पर आखिरकार, वह तलाक के लिए फाइल करने में सक्षम हो गई और वह उस परेशानी से बाहर निकल पाई।

प्रगति की गति
उम्मीद की किरण क्लिनिक की कल्पना, यौन और लिंग आधारित हिंसा से प्रभावित लोगों के लिए उपयोगी और प्रभावी उपचार के एक मॉडल के रूप में की गई थी – जो सप्ताह में सातों दिन 24 घंटे खुला रहता है – जिसे पूरे भारत में अपनाया जा सकता है। इस कार्यक्रम का विचार निर्भया कांड से प्रेरित था, एक भयानक हमला जिसमें एक 23 साल की मेडिकल छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, पीटा गया, और बस में छह लोगों द्वारा प्रताड़ित किया गया, उसे बहुत चोटें आई और बाद में उसकी चोटों से मृत्यु हो गई। इस अपराध (जो दिसंबर 2012 में हुआ था) ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान आकर्षित किया और भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की व्यापकता के बारे में विरोधों की एक आंधी शुरू कर दी। मार्च 2020 में, सामूहिक बलात्कार और हत्या के दोषी लोगों में से चार को फांसी दी गयी थी, लेकिन महामारी और लॉकडाउन की चिंताओं के बीच यह खबर काफी हद तक दब गई थी।
दिव्या कहती हैं, पिछले आठ वर्षों में, निर्भया कांड और भारत भर में इसके जैसे अन्य घटनाओं ने लोगों मे जागरूकता बढ़ाई है कि यौन हिंसा कितनी व्यापक रूप से फैली है, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। वह कहती हैं “इसका दोष या जिम्मेदारी अभी भी खुद अपराधी की तुलना में पीड़ित पर अधिक है, यह अभी भी एक महत्वपूर्ण धारणा है जो समाज मे मौजूद है।”
जब मई में लॉकडाउन के आदेश में ढील दी गई, तो सीमा और अन्य आशा ने पीड़ित लोगों को फिर से एमएसएफ के यौन और लिंग आधारित हिंसा क्लिनिक में लाना शुरू कर दिया- और वो भी रिकॉर्ड संख्या में। गर्मियों तक, क्लिनिक में इलाज के लिए तीन गुना अधिक लोग आ रहे थे।
पूनम और पूजा ने एनजीओ के साथ फिर से संबंध स्थापित करना शुरू कर दिया, नए लोगों को अपना परिचय दिया और समझाया कि एमएसएफ क्या है और एसजीबीवी क्लिनिक क्या सेवाएं प्रदान करता है, ताकि वे फिर से सहयोग करना शुरू कर सकें। क्लिनिक एक बढ़ी हुई आवश्यकता और उसी कठिन चुनौतियों का सामना कर रहा था।
डॉ. गीतिका कहती हैं, “करीबी साथी की हिंसा से प्रभावित लोगों के साथ मुख्य मुद्दा यह है कि वे अपने साथी को छोड़ने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए वे काफी पुरानी पीड़ित हैं। वह कहती हैं “उदाहरण के लिए ” अगर हम उन्हें गोनोरिया या क्लैमाइडिया के लिए दवाएं देते हैं,और उनकी चोटों का इलाज करते हैं, पर फिर वे उसी व्यक्ति के पास वापस जाते हैं।” एक महीने बाद, वे वही समस्याएं लेकर वापस आ सकते हैं। “मुझे लगता है कि इन महिलाओं के लिए यह वास्तव में बहुत कठिन है, और हम भी कई बार असहाय महसूस करते हैं क्योंकि यह चक्र बस चलता रहता है।”
दिव्या कहती हैं, “अगर आप करीबी साथी द्वारा हिंसा को देखें, तो इसका ठोस और स्पष्ट समाधान यह होगा, की आप शादी खत्म कर दे और फिर आपकी समस्या का समाधान हो सकता है।” लेकिन हम यह जानते है की, अधिकांश महिलाओं के साथ यह विकल्प संभव नहीं और न ही उन्हें पसंद है। वह कहती हैं कि उनमें से ज्यादातर आर्थिक रूप से अपने पतियों पर निर्भर हैं, जो एक सबसे बड़ी बाधा है। उनमें से कई प्रवासी हैं, वे क्षेत्र या बाकी समुदाय से परिचित नहीं हैं और उन्हें अक्सर अपने निकटतम लोगों या रिश्तेदारों से बहुत कम या कोई समर्थन नहीं मिलता है क्योंकि हिंसक व्यवहार और पीड़ा सामान्य हो गई है।
इसके बारे में शिकायत करने से एक कलंक लगता है और इसे देश के कानूनों में अहमियत नहीं दी जाती है। दिव्या कहती हैं, “भारतीय कानून वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में मान्यता नहीं देता है, जिसे यह समझ आता है कि यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे हमें गलत समझना चाहिए।”
संयुक्त राष्ट्र महिला रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर, किसी भी प्रकार की यौन हिंसा का अनुभव करने वाली कम से कम 60 प्रतिशत महिलाएं इसकी रिपोर्ट नहीं करती हैं। भय, शर्म और कलंक ऐसे कारक जो हिंसा की रिपोर्ट करने और सहायता लेने को इतना कठिन अपराध बनाते हैं। यह कारक करीबी साथी की हिंसा से प्रभावित लोगों के लिए इतने कड़े हैं, कोई संभावना ही नहीं हो सकती की, वे एक अपमानजनक साथी को छोड़ देंगे। “उन्होंने यह स्वीकार कर लिया है कि यह उनकी वास्तविकता है और वे हिंसा को किसी ऐसी चीज के रूप में नहीं देखते हैं जिससे उन्हें दूर होने की जरूरत है। लेकिन, यहीं से आउटरीच टीम आती है, ”दिव्या कहती हैं। “वे उन्हें बताएंगे कि इस तरह से जीने के अलावा भी एक समाधान है, और एक तरीका है जिससे आप इससे बाहर आ सकते हैं।”
पूजा कहती हैं, करीबी साथी द्वारा हिंसा से पीड़ित व्यक्ति
, पहले परिवार के सदस्य या दोस्त के पास जाता है, जिन के साथ आमने-सामने बात करने में बहुत समय बिताते है। दुर्भाग्य से, पीड़ित को अक्सर उनके सबसे करीबी लोगों से कोई समर्थन नहीं मिलता हैं। इसके बजाय, उन्हें अपने दुर्व्यवहार करने वाले के पास वापस जाने के लिए कहा जाता है, इसके बारे में शिकायत करने के लिए उनका मज़ाक भी उड़ाया जा सकता है। और अगर उनके परिवार के सदस्य ही उन्हें नहीं समझते हैं, तो वे क्यों सोचेंगे कि कोई क्लिनिक या कोई ऐसा व्यक्ति जिसे वे जानते ही नहीं हैं, मदद करने में सक्षम होंगे? यही कारण है कि विश्वास स्थापित करना उन प्रमुख चीजों में से एक है जिन पर हम काम करते हैं।”
एमएसएफ (MSF) जमीनी स्तर पर काम करने वाले एनजीओ के साथ मिल कर, समुदायों के बीच विश्वास बनाने में सक्षम रहा है, इन एनजीओ का मुख्य कार्य है, ट्रांसजेंडर लोगों या यौनकर्मियों के लिए समर्थन करना और आशा कर्मचारियों के साथ काम करना। ये कनेक्शन कई और प्रभावित लोगों को उपचार प्राप्त करने में मदद करते हैं और उन से यह उम्मीद की जाती है, की वे इस बात पर विचार करना शुरू करें कि इस अपमानजनक, अस्वस्थ और जीवन के लिए खतरे वाली परिस्थितियों को कैसे छोड़ा जाए।
आशा स्वयंसेवकों में से एक सीमा कहती हैं, ” एमएसएफ (MSF) की इस योजना से पहले, हम यौन हिंसा से बचे लोगों को सरकारी अस्पतालों में भेजा करते थे, लेकिन वे आमतौर पर वहां जाने में सहज महसूस नहीं करते थे। अब जब से हम एमएसएफ के साथ काम कर रहे हैं, तो उम्मीद की किरण क्लिनिक द्वारा प्रदान किए जाने वाले उपचार के कारण समुदाय के साथ हमारे भरोसे का स्तर और भी गहरा और मजबूत हो गया है।”
शायद जो बात, एमएसएफ (MSF) द्वारा दी जाने वाली देखभाल को इस क्षेत्र के अन्य संस्थानों से सबसे अलग करती है, वह है गोपनीयता पर ध्यान देना। यहाँ मरीजों के नाम दूसरों के सामने नहीं लिए जाते हैं, उनकी कहानियाँ निजी तौर पर सुनी जाती हैं, और उन्हें अपनी गवाही को बार बार दोहराने के लिए नहीं कहा जाता है। क्लिनिक में आने वाले किसी भी व्यक्ति की गोपनीयता का सम्मान करने के लिए, हर स्तर पर स्टाफ के सदस्यों को प्रशिक्षित किया जाता है। ये सोच आमतौर पर किसी भी सरकारी अस्पतालों में नहीं देखी जाती हैं।
दिव्या कहती हैं, “मुझे लगता है कि ऐसा क्या है जो मरीजों की मदद करता है और उन्हें यह आश्वासन देता है? कि हाँ, यह ऐसी कोई चीज है जिस पर मैं भरोसा कर सकता हूं, और यह ऐसी चीज है जहाँ मैं वापस जा सकता हूं।”
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